दायरे
अपनी औकात के अंदर
इश्क तो सभी करते हैं,
ज़रा औकात के बाहर,
किसी को चूमकर देखो...
पता चलेगा,
चाहत में कितने नुक्स हैं।
तुम इश्क के आइने से,
आदतों की धूल
पोंछ कर तो देखो।
अपनी जात के अंदर
गले तो सभी लगाते हैं,
ज़रा जात के बाहर,
किसी को बाहों में भरकर देखो...
पता चलेगा,
मोहब्बत के बदन पे
रिसते जख्म कितने हैं।
तुम प्यार के पीठ से,
सदियों की शूल
निकाल कर तो देखो।
अपने धर्म के अन्दर
पास तो सभी बुलाते हैं,
ज़रा धर्म के बाहर,
किसी के करीब आकर देखो...
पता चलेगा,
प्यार के आगोश में
दायरे कैसे छटपटाते हैं!
नज़दीकियों की उफनती नदी से,
तुम दूरियों की आग
बुझाकर तो देखो।
अपनी बाँधों के बीच
भरोसे की नाव सभी चलाते हैं,
तुम बाँधो के परे,
ऐतबार का सागर छलका के तो देखो,
शर्तों की भंवर से परे,
किसी अनजान के साथ,
दूर, आज़ादियों की फलक तक
जाकर तो देखो...
मेरी आवाज़
मेरी आवाज़ मेरी है.
मेरी आवाज़ मेरी है.
न माँ की गवाही है,
न बाप की लापरवाही है.
जो तुम्हें यह समझ न आए,
तो यह तुम्हारी बेकारी है.
मेरे सपनों में दिखती मुझे,
एक अलग ही चिन्गारी है.
अब मेरी बारी है.
अब मेरी बारी है.
कहे रहे PRODUCER साहब की कारी कुतिया...
यार, तेरा दिमाग़ बहुत दौड़ता है.
और मेरा दिमाग़
हर दौड़ने वाले को घूरता है.
क्यूँकि तुम इंसानो की
सोहबत ही ऐसी है.
तुम्हारा ज़र्रा-ज़र्रा,
एक-दूसरे को कोसता है,
तुम्हारा हर साया,
दूसरे से नाक सिकोड़ता है,
कहीं कोई किसी से
सिक्के निचोड़ता है.
तो कहीं कोई किसी के
धर्म को डंडों से तोड़ता है.
कहीं कोई गांधी नाम के मानस को
मारने वाले गोडसे को
भला बता के परोसता है,
सबका सिर मूँड़ता है.
फिर बताओ भला,
की मैं,
एक अदनी सी छोटी बिटिया,
कैसे सचेत ना रहूँ?
क्यूँकि तुम्हारी दुनिया में तो
बाप भी
बेटी को नहीं छोड़ता है.